न हुई ग़र मेरे मरने से तसल्ली, न सही
इम्तिहाँ और भी बाकि हों, तो ये भी न सही,
खार-ए-आलम-ए-हसरत-ए-दीदार (काँटों भरे रास्ते पर दीदार की हसरत) तो है
शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली (सब्र के गुलिस्ताँ के फूल) न सही,
मयपरस्तों ! (शराबियों) खुम-ए-मय (शराब का घूँट) मुँह से लगाये ही बनी
एक दिन ग़र न हुआ बज़्म (महफ़िल) में साक़ी न सही
नफ़स-ए-कैस (मजनूँ की साँस) की है चश्मा-ओ-चराग-ए-सहरा (रेगिस्तान का तालाब)
ग़र नहीं शमा-ए-सियाहखाना-ए-लैला (लैला के अँधेरे घर की शमा) न सही,
एक हंगामे पर मौक़ूफ़ (बंद) है घर की रौनक
नौह-ए-गम (मातम) ही सही, नगमा-ए-शादी न सही,
न सिताइश (तारीफ) की तमन्ना, न सिले (इनाम) की परवाह
ग़र नहीं है मेरे अशआर (शेरों) में मानी (अर्थ) न सही
इशरत-ए-सोहबत-ए-खूबाँ (माशूक़ के साथ का ऐश्वर्य) ही गनीमत समझो
न हुई 'ग़ालिब', अगर उम्र-ए-तबीई (लम्बी उम्र) न सही