कोई उम्मीद बर (पूरी) नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती,
मौत का एक दिन मु'अय्यन (मुक़र्रर) है
नींद क्यूँ फिर रात भर नहीं आती,
आगे (पहले) आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती,
जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद (इबादत की ताक़त)
पर तबीयत इधर नहीं आती,
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती,
क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती,
दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू भी ए ! चारागर (हकीम) नहीं आती,
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती,
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती,
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती,