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जनवरी 17, 2012

जला है जिस्म जहाँ


हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'? 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू (तरीका) क्या है,

न शो'ले (आग) में ये करिश्मा न बर्क़ (बिजली) में ये अदा 
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू (शरारत, अकड़) क्या है, 

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न (बातचीत) तुमसे 
वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू (दुश्मन के सिखाने का डर) क्या है, 

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन (लिबास)
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू (रफू की ज़रूरत) क्या है,

जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा 
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू (तलाश) क्या है, 

रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल  
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है, 

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त (जन्नत) अज़ीज़ 
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू (गुलाबी महकती शराब) क्या है, 

पियूँ शराब अगर ख़ुम (शराब के ढोल) भी देख लूँ दो-चार 
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू (बोतल, प्याला, सुराही) क्या है, 

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार (बोलने की ताक़त) और अगर हो भी 
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू (ख्वाहिश) क्या है,

हुआ है शाह (शहंशाह) का मुसाहिब (दरबारी), फिरे है इतराता 
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू (इज्ज़त) क्या है,

जनवरी 05, 2012

जहाँ कोई न हो


रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो 
हमसुख़न (हमदर्द) कोई न हो और हमज़बाँ (अपनी भाषा जानने वाला) कोई न हो, 

बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये 
कोई हमसाया (साथी) न हो और पासबाँ (हिफाज़त करने वाला) कोई न हो, 

पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार (बीमार की सेवा करने वाला) 
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ (मौत पर रोने वाला) कोई न हो,