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अगस्त 11, 2011

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना


इशरत-ए-क़तरा (बूंद का सुख) है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना,

तुझसे क़िस्मत में मेरी सूरत-ए-कुफ़्ल-ए-अबजद(नफरत)
था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना,

दिल हुआ कशमकशे-चारा-ए-ज़हमत (दर्द से निजात) में तमाम
मिट गया घिसने में इस उक़्दे (गाँठ) का वा (खुलना) हो जाना,

अब ज़फ़ा से भी हैं महरूम हम, अल्लाह-अल्लाह!
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा (महबूब का दुश्मन) हो जाना,

ज़ोफ़ (कमजोरी) से गिरियां (रोना) मुबदृल (बदल गया) व-दमे-सर्द(ठंडी आह) हुआ
बावर (यकीन) आया हमें पानी का हवा हो जाना,

दिल से मिटना तेरी अन्गुश्ते-हिनाई (हाथ की मेहंदी) का ख्याल
हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना,

है मुझे अब्र-ए-बहारी (सावन के बादल) का बरस कर खुलना
रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना,

गर नहीं नकहत-ए-गुल (फूल की खुशबू) को तेरे कूचे की हवस
क्यों है गर्द-ए-रह-ए-जौलाने-सबा (चमन की धूल) हो जाना,

ताकि मुझ पर खुले ऐजाज़े-हवाए-सैक़ल (हवा का राज़)
देख बरसात में सब्ज़ आईने का हो जाना,

बख्शे है जलवा-ए-गुल (फूल की खुशबु) ज़ौक-ए-तमाशा (आनंद), गालिब
चश्म (आँख) को चाहिए हर रंग में वा (खुलना) हो जाना