Click here for Myspace Layouts

सितंबर 25, 2012

क़त्ल



दोस्त ग़मख्वारी (दुःख) में मेरी सई (मदद) फरमाएंगे क्या?
ज़ख्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जायेंगे क्या?

बेनियाज़ी (तकलीफ) हद से गुज़री बंदापरवर, कब तलक? 
हम कहेंगे हाल-ए-दिल, और आप फरमाएंगे 'क्या'?

हज़रत -ए-नासेह (उपदेशक) गर आयें दीद-ओ-दिल फर्श-ए-राह (क़दमों में पलकें) 
कोई मुझको यह तो समझा दो, कि समझायेंगे क्या?

आज वाँ तेग-ओ-कफ़न (तलवार और कफ़न) बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज्र (ऐतराज़) मेरे क़त्ल में, वो अब लायेंगे क्या?

गर किया नासेह ने हमको क़ैद, अच्छा यूँ ही सही 
ये जूनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छूट जाएगें क्या?

खाना जाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं (जुल्फों के बंदी), ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ 
है गिरफ्तार-ए-वफ़ा, ज़िन्दां (कैदखाने) से घबराएंगे क्या?

है अब इस मामूरे (बस्ती) में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फत (इश्क़ का आकाल)
हमने यह माना, कि दिल्ली में रहेंगे, खायेंगे क्या?  

सितंबर 07, 2012

निकम्मा



गैर लें महफ़िल में बोसे (चुम्बन) जाम के 
हम रहे यूँ तिशना लब (प्यासे) पैगाम के,

खस्तगी (बर्बादी) का तुमसे क्या शिकवा कि ये
हथकंडे हैं चर्खे-ए-नीली फाम (नीले आसमान) के,

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक हैं तुम्हारे नाम के

रात पी ज़मज़म (पाक पानी) और मय सुबहदम (सुबह)
धोये धब्बे जाम-ए-अहराम (हज के पाक कपड़े) के,

दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हलके (धागे) हैं तुम्हारे दाम (जाल) के,

शाह (बादशाह) के है गुस्ल-ए-सेहत की खबर
देखिये दिन कब फिरें हम्माम (गुस्लखाना) के,

इश्क ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया 
वरना हम भी आदमी थे काम के,