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नवंबर 02, 2012

दुश्मन आसमां अपना


ज़िक्र उस परीवश (परिचेहरा) का और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब (दुश्मन) आखिर था जो राजदां अपना, 

मय (शराब) वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-गैर में, या रब !
आज ही हुआ मंज़ूर उनको इम्तिहाँ अपना, 

मंज़र (नज़ारा) एक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श (आसमां) से इधर होता काश के मकाँ अपना, 

दे वो जिस क़दर ज़िल्लत (बेईज्ज़ती) हम हँसी में टालेंगे
बारे आशना (दोस्त) निकला उनका पासबां (पहरेदार) अपना, 

दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक, जाऊँ उनको दिखला दूँ
उँगलियाँ फिगार (घायल) अपनी, खामा खूँ चका (खून से सना क़लम) अपना,

घिसते घिसते मिट जाता आपने अबस (बेकार) बदला
नंग-ए-सिजदा (सजदे के दाग) से संग-ए-आस्तां (चौखट) अपना,

ताकि करे न गम्माज़ी (चुगली), कर लिया है दुश्मन को 
दोस्त की शिकायत में हमने हमज़बाँ (राज़दार) अपना,

हम कहाँ के दाना (आलिम) थे किस हुनर में यकता (माहिर) थे ?
बेसबब (बिना वजह) हुआ है 'ग़ालिब' दुश्मन आसमां अपना,