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फ़रवरी 21, 2012

पत्थर नहीं हूँ मैं


दायम (हमेशा) पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं,

क्यों गर्दिश-ए-मुदाम (बुरा वक़्त) से घबरा न जाये दिल ?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र (शराब का प्याला) नहीं हूँ मैं,

या रब! ज़माना मुझको मिटाता है किस लिये ?
लौह-ए-जहां (लोहे के वरक़) पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर (हमेशा का लिखा) नहीं हूँ मैं,

हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत (दर्द) के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं,

किस वास्ते अज़ीज़ (अपने) नहीं जानते मुझे ?
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर (लाल,पन्ना,सोना और मोती) नहीं हूँ मैं,

रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यों दरेग़ (दूर) ?
रुतबे में मेहर-ओ-माह सूरज और चाँद) से कमतर नहीं हूँ मैं,

करते हो मुझको मनअ़-ए-क़दम-बोस (पैर चूमने से मना) किस लिये ?
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं ?

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार (पेंशन पाने वाले) हो, दो शाह (बादशाह) को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं" ,

फ़रवरी 04, 2012

क़रार


आ, कि मेरी जान को क़रार नहीं है 
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार (इंतज़ार के बर्दाश्त की ताक़त) नहीं है, 

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर (दुनिया की जिंदगी) के बदले 
नशा बअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार (खुमार का अंदाज़) नहीं है,

गिरियां (गिरते आंसू) निकाले है तेरी बज़्म से मुझको 
हाय कि रोने पे इख़्तियार नहीं है, 

हमसे अ़बस (बेरुखी) है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर (नाराज़गी का अंदेशा) 
ख़ाक में उश्शाक़ (आशिक) की ग़ुबार नहीं है,

दिल से उठा लुत्फ-ए-जल्वा हाए म'आनी (मतलब) 
ग़ैर-ए-गुल (बिना फूल के) आईना-ए-बहार नहीं है,

क़त्ल का मेरे किया है अ़हद (फैसला) तो बारे (आखिर) 
वाये! अखर (लेकिन) अ़हद उस्तवार (पक्का) नहीं है, 

तूने क़सम मैकशी (शराबखोरी) की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का मगर कुछ ऐतबार नहीं है,