मिर्ज़ा - असद उल्लाह ख़ां उर्फ ग़ालिब जिन्हें "मिर्ज़ा ग़ालिब" के नाम से भी जाना जाता है|उर्दू अदब के महान शायर थे वैसे तो उनके बारे में कुछ कहना या कुछ लिखना सूरज को दीया दिखाने के बराबर है| इस ब्लॉग के ज़रिये मेरी कोशिश है कि उनकी गजलों को सरल तरीके से पेश कर सकूं और इसके पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके कलाम को पढ़ और समझ सके |
बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएं"मिर्ज़ा ग़ालिब" जी के शेर साझा करने के लिए आभार !!! इमरान जी ...
जवाब देंहटाएंनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
मिर्ज़ा की ग़ज़लों से रु-ब-रु कराती आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल रविवार, दिनांक 29 सितम्बर 2013, को ब्लॉग प्रसारण पर भी लिंक की गई है , कृपया पधारें , औरों को भी पढ़ें और सराहें,
जवाब देंहटाएंसाभार सूचनार्थ
वाह, उम्दा पंक्तियाँ। वैसे एक ख्याल (आउट ऑफ़ लिंक) आया कि 'वो' तो वाकई न गया वक़्त है, न आनेवाला .. 'वो' तो समय से परे है, आकारों-विचारों से परे ..
जवाब देंहटाएंसादर,
मधुरेश
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन ग़ज़ल ... चित्रा जी की आवाज़ में बहुत शानदार धुन में पिरोई गयी है
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