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जुलाई 06, 2011

दिल भी जल गया होगा


हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है?' 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू (तरीका) क्या है,

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ (बिजली) में ये अदा 
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू (अकड़) क्या है,

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न तुमसे 
वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू (दुश्मनी का डर) क्या है,

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन (लिबास)
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू (रफू की ज़रूरत) क्या है,

जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा 
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है, 

रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल 
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है, 

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त(जन्नत) अज़ीज़ 
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू (कस्तूरी की ख़ुशबू ) क्या है, 

पियूँ शराब अगर ख़ुम (शराब के ढोल) भी देख लूँ दो-चार 
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू (जाम,बोतल,सुराही) क्या है, 

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार (बोलने की ताक़त) और अगर हो भी 
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है,

हुआ है शाह का मुसाहिब (दरबारी), फिरे है इतराता 
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है,