जौर (ज़ुल्म) से बाज़ आयें पर बाज़ आएँ क्या
कहते हैं हम तुमको मुँह दिखलायें क्या,
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या,
लाग (दुश्मनी) हो तो उसको हम समझे लगाव
जब न हो कुछ तो धोखा खाएँ क्या,
हो लिए क्यूँ नामाबर (डाकिये) के साथ साथ
या रब ! अपने ख़त को हम पहुँचाएँ क्या,
मौज-ए-खूँ (खून कि लहर) सर से गुज़र ही क्यूँ न जाए
आस्तान-ए-यार (माशूक कि चौखट) से उठ जाएँ क्या,
उम्र भर देखा किए मरने कि राह
मर गए पर देखिये दिखलाएँ क्या,
पूछते हैं वो कि "ग़ालिब" कौन है ?
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या,