दर्द मिन्नतकशे दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ,
जमा करते हो क्यूँ रकीबो को
इक तमाशा हुआ, गिला न हुआ,
हम कहाँ किस्मत आजमाने जाएँ
तू ही जब खंजर-आज़मा न हुआ,
कितने मीठे हैं तेरे लब, की रकीब
गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ,
है खबर आज उनके आने की
आज ही घर में बोरिया* न हुआ,
क्या वो नमरुद** की खुदाई थी,
बन्दगी में मेरा भला न हुआ,
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक तो ये है, की हक अदा न हुआ,
ज़ख्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया, रवा न हुआ,
कुछ तो पढ़िए की लोग कहते है
आज ग़ालिब, गज़लसरा न हुआ,
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* बोरिया - बिस्तर
** नमरुद - एक बादशाह, जो अपने आप को खुदा कहता था