न हुई ग़र मेरे मरने से तसल्ली, न सही
इम्तिहाँ और भी बाकि हों, तो ये भी न सही,
खार-ए-आलम-ए-हसरत-ए-दीदार (काँटों भरे रास्ते पर दीदार की हसरत) तो है
शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली (सब्र के गुलिस्ताँ के फूल) न सही,
मयपरस्तों ! (शराबियों) खुम-ए-मय (शराब का घूँट) मुँह से लगाये ही बनी
एक दिन ग़र न हुआ बज़्म (महफ़िल) में साक़ी न सही
नफ़स-ए-कैस (मजनूँ की साँस) की है चश्मा-ओ-चराग-ए-सहरा (रेगिस्तान का तालाब)
ग़र नहीं शमा-ए-सियाहखाना-ए-लैला (लैला के अँधेरे घर की शमा) न सही,
एक हंगामे पर मौक़ूफ़ (बंद) है घर की रौनक
नौह-ए-गम (मातम) ही सही, नगमा-ए-शादी न सही,
न सिताइश (तारीफ) की तमन्ना, न सिले (इनाम) की परवाह
ग़र नहीं है मेरे अशआर (शेरों) में मानी (अर्थ) न सही
इशरत-ए-सोहबत-ए-खूबाँ (माशूक़ के साथ का ऐश्वर्य) ही गनीमत समझो
न हुई 'ग़ालिब', अगर उम्र-ए-तबीई (लम्बी उम्र) न सही
Very Beautiful gazal.
जवाब देंहटाएंन सिताइश की तमन्ना, न सिले की परवाह
जवाब देंहटाएंगर नहीं है मेरे अशआर में मानी न सही
बहुत सुंदर ! ग़ालिब के इस शेर से काफी राहत मिलती है..
मिर्ज़ा कि ग़ज़लों को सरल करके पेश करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया इमरान जी!
जवाब देंहटाएंग़ालिब सा० की गजल साझा करने के लिए आभार,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: गुलामी का असर,,,
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जवाब देंहटाएंhii i am auther of blog http://differentstroks.blogspot.in/
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बहुत सुंदर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया।
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जवाब देंहटाएंन सिताइश (तारीफ) की तमन्ना, न सिले (इनाम) की परवाह
ग़र नहीं है मेरे अशआर (शेरों) में मानी (अर्थ) न सही
वाह ... बहुत खूब
आभार आपका इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये