मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा - असद उल्लाह ख़ां उर्फ ग़ालिब जिन्हें "मिर्ज़ा ग़ालिब" के नाम से भी जाना जाता है|उर्दू अदब के महान शायर थे वैसे तो उनके बारे में कुछ कहना या कुछ लिखना सूरज को दीया दिखाने के बराबर है| इस ब्लॉग के ज़रिये मेरी कोशिश है कि उनकी गजलों को सरल तरीके से पेश कर सकूं और इसके पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके कलाम को पढ़ और समझ सके |
जनवरी 17, 2014
नवंबर 13, 2013
खुदा की कुदरत
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते हैं,
वो आये घर में हमारे खुदा की कुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं,
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख्म-ए-जिगर को देखते हैं,
तेरे जवाहिर-ए-तर्फ़-ए-कुल (ताज में जड़े हीरे) को क्या देखें !
हम औज-ए-ताले-ए-लाल-ओ-गुहर (हीरे की किस्मत) को देखते हैं,
सितंबर 28, 2013
अगस्त 14, 2013
मजनूँ
सरगश्तगी (परेशानी) में आलम-ए-हस्ती से यास (उदासी) है
तस्कीन (उम्मीद) को दे नवेद (खुशखबरी) की मरने की आस है,
लेता नहीं मेरे दिल-ए-आवारा की खबर
अब तक वो जानता है कि मेरे पास है,
कीजे बयाँ सुरूर-ए-तप-ए-ग़म (गम की आग की ख़ुशी) कहाँ तलक ?
हर मू (वक़्त) मिरे बदन प ज़बान-ए-सिपास (अहसान मंद जुबान) है,
है वो गुरुर-ए-हुस्न से बेगाना-ए-वफ़ा (अनजान)
हरचंद उसके पास दिल-ए-हक़्शनास (इल्म से भरा) है,
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब (चाँदनी रात) में शराब
इस बलगमी मिजाज़ (ठंडी शख्सियत) को गर्मी ही रास है,
हर एक मकान को है मकीं (निवासी) से शरफ़ (शोहरत) 'असद'
मजनूँ जो मर गया है तो जंगल उदास है,
जुलाई 18, 2013
महफ़िल
बाग़ पाकर ख़फ़कानी (पागल) यह डराता है मुझे
साय-ए-शाख़-ए-ग़ुल (डाली की छाया) अफई (साँप) नज़र आता है मुझे,
जौहर-ए-तेग (तलवार की तेज़ी) बसर चश्मा-ए-दीगर मालूम (आँखों देखी)
हूँ मैं वो सब्ज़ा (पेड़) की ज़हराब (जहर भरा पानी) उगाता है मुझे,
मुद्दआ महब-ए-तमाशा-ए-शिकस्त-ए-दिल (दिल टूटने का तमाशा) है
आईनाखाने में कोई लिए जाता है मुझे,
नाला सरमाय-ए-यक आलम (आर्तनाद ही सच)आलम क़फ़-ए-ख़ाक (मुट्ठी भर ख़ाक)
आसमाँ बैज-ए-क़ुमरी (कुमरी पक्षी का अंडा) नज़र आता है मुझे
जिंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे?
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