गैर लें महफ़िल में बोसे (चुम्बन) जाम के
हम रहे यूँ तिशना लब (प्यासे) पैगाम के,
खस्तगी (बर्बादी) का तुमसे क्या शिकवा कि ये
हथकंडे हैं चर्खे-ए-नीली फाम (नीले आसमान) के,
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक हैं तुम्हारे नाम के
रात पी ज़मज़म (पाक पानी) और मय सुबहदम (सुबह)
धोये धब्बे जाम-ए-अहराम (हज के पाक कपड़े) के,
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हलके (धागे) हैं तुम्हारे दाम (जाल) के,
शाह (बादशाह) के है गुस्ल-ए-सेहत की खबर
देखिये दिन कब फिरें हम्माम (गुस्लखाना) के,
इश्क ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के,
अभी तक तो इतना ही शेर जानते थे और दोहराते थे ..
जवाब देंहटाएंइश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे कामके
....आज पहली बार मुकम्मल ग़ज़ल जानी ...आभार इमरान जी
बहुत बहुत शुक्रिया सरस जी ।
हटाएंयदि आज के लिहाज़ से देखें तो यह शे'र बहुत ही उम्दा है-
जवाब देंहटाएंशाह के है गुस्ल-ए-सेहत की खबर
देखिये दिन कब फिरें हम्माम के
बहुत खूब है ग़ालिब आज भी.
शुक्रिया भूषण जी.....सही कहा आपने यूँ ही ग़ालिब को सदी का शायर नहीं कहा गया ।
हटाएंpuri gazal se avgat karwaane ke liye shukriya.... :)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अवन्ती जी।
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी।
हटाएंग़ालिब साहब की बहुत ही उम्दा बेहतरीन प्रस्तुति,,,,आभार इमरान जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
शुक्रिया धीरेन्द्र जी।
हटाएंइसके तो बस अंतिम शे’र से वाकिफ़ थे। आज आपने पूरी ग़ज़ल पढ़वा दी। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मनोज जी।
हटाएंखत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
जवाब देंहटाएंहम तो आशिक हैं तुम्हारे नाम के
बहुत खूब...ग़ालिब दा जवाब नहीं..
बहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी।
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