नुक्ताचीं (गलती निकलना) है गम-ए-दिल उसको सुनाए न बने
क्या बने बात, जहाँ बात बनाए न बने,
मैं बुलाता तो हूँ उसको, मगर ए ! जज्बा-ए-दिल
उस पे बन जाये कुछ ऐसी की बिन आए न बने,
खेल समझा हैं कहीं छोड़ न दे, भूल न जाए
काश ! यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने,
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को, कि अगर
कोई पूछे, कि क्या है ये ? तो छुपाए न बने,
इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं, तो क्या?
हाथ आएं, तो उन्हें हाथ लगाए न बने,
कह सके कौन कि ये जलवागीरी किसकी है?
पर्दा छोड़ा है वो उसने, कि उठाये न बने,
मौत कि राह न देखूँ, कि बिन आए न रहे
तुमको चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने,
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न बने
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने,
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने,
मरहूम ज़नाब गालिब के कलाम पर
जवाब देंहटाएंटिप्पणी
ना बाबा ना
अपने बस में नहीं
बहुत बहत शुक्रिया आपका ।
हटाएंमिर्जा ग़ालिब जी का जबाब नही,,,,,बेहतरीन गजल,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: शहीदों की याद में,,
बहुत बहत शुक्रिया आपका ।
हटाएंआपका बहुत - बहुत आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंकि लगाए न बने और बुझाए न बने
जवाब देंहटाएंख़ूब गाते थे यह ग़ज़ल हम।
शुक्रिया सदा जी और मनोज जी।
जवाब देंहटाएंइश्क पर जोर नहीं है ये वह आतिश ग़ालिब
जवाब देंहटाएंकि लगाये न लगे और बुझाये न बने...
वाह ! ग़ालिब की इस खूबसूरत गजल को पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया...कैसी पेचीदगियों से गुजरती है यह गजल बार बार पढ़ो तो ही समझ आती है और असर बढ़ता जाता है.
बहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी ।
हटाएंग़ालिब जी की लाजबाब प्रस्तुति के लिए,,,,,आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,