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अगस्त 17, 2012

आतिश



नुक्ताचीं (गलती निकलना) है गम-ए-दिल उसको सुनाए न बने
क्या बने बात, जहाँ बात बनाए न बने,

मैं बुलाता तो हूँ उसको, मगर ए ! जज्बा-ए-दिल 
उस पे बन जाये कुछ ऐसी की बिन आए न बने,

खेल समझा हैं कहीं छोड़ न दे, भूल न जाए
काश ! यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने,

ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को, कि अगर 
कोई पूछे, कि क्या है ये ? तो छुपाए न बने,

इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं, तो क्या?
हाथ आएं, तो उन्हें हाथ लगाए न बने,

कह सके कौन कि ये जलवागीरी किसकी है?
पर्दा छोड़ा है वो उसने, कि उठाये न बने,

मौत कि राह न देखूँ, कि बिन आए न रहे
तुमको चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने,

बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न बने
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने,

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने,

10 टिप्‍पणियां:

  1. मरहूम ज़नाब गालिब के कलाम पर
    टिप्पणी
    ना बाबा ना
    अपने बस में नहीं

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    उत्तर
    1. बेनामीअगस्त 17, 2012

      बहुत बहत शुक्रिया आपका ।

      हटाएं
  2. मिर्जा ग़ालिब जी का जबाब नही,,,,,बेहतरीन गजल,,,,

    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेनामीअगस्त 17, 2012

      बहुत बहत शुक्रिया आपका ।

      हटाएं
  3. आपका बहुत - बहुत आभार इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए

    जवाब देंहटाएं
  4. कि लगाए न बने और बुझाए न बने
    ख़ूब गाते थे यह ग़ज़ल हम।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामीअगस्त 21, 2012

    शुक्रिया सदा जी और मनोज जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. इश्क पर जोर नहीं है ये वह आतिश ग़ालिब
    कि लगाये न लगे और बुझाये न बने...

    वाह ! ग़ालिब की इस खूबसूरत गजल को पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया...कैसी पेचीदगियों से गुजरती है यह गजल बार बार पढ़ो तो ही समझ आती है और असर बढ़ता जाता है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेनामीअगस्त 22, 2012

      बहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी ।

      हटाएं
  7. ग़ालिब जी की लाजबाब प्रस्तुति के लिए,,,,,आभार

    RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...