दोस्त ग़मख्वारी (दुःख) में मेरी सई (मदद) फरमाएंगे क्या?
ज़ख्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जायेंगे क्या?
बेनियाज़ी (तकलीफ) हद से गुज़री बंदापरवर, कब तलक?
हम कहेंगे हाल-ए-दिल, और आप फरमाएंगे 'क्या'?
हज़रत -ए-नासेह (उपदेशक) गर आयें दीद-ओ-दिल फर्श-ए-राह (क़दमों में पलकें)
कोई मुझको यह तो समझा दो, कि समझायेंगे क्या?
आज वाँ तेग-ओ-कफ़न (तलवार और कफ़न) बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज्र (ऐतराज़) मेरे क़त्ल में, वो अब लायेंगे क्या?
गर किया नासेह ने हमको क़ैद, अच्छा यूँ ही सही
ये जूनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छूट जाएगें क्या?
खाना जाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं (जुल्फों के बंदी), ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ
है गिरफ्तार-ए-वफ़ा, ज़िन्दां (कैदखाने) से घबराएंगे क्या?
है अब इस मामूरे (बस्ती) में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फत (इश्क़ का आकाल)
हमने यह माना, कि दिल्ली में रहेंगे, खायेंगे क्या?
behtreen post
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुधा जी।
हटाएंहिंदी अर्थ देने का यह तरीका ज्यादा अच्छा लगा ग़ालिब साहब तक पहुँचने को आसान बना दिया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना जी। इसलिए ही यहाँ देता हूँ की पढ़ते समय ही बात समझ में आ जाये क्योंकि पहले पढो फिर नीचे देखो तब तक बात स्लिप हो जाती है।
हटाएंइस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी।
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति इमरान भाई!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधुरेश जी।
हटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति,,,मिर्जा साहब की गजल पढवाने के लिये ,शुक्रिया,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : गीत,
बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी।
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