Click here for Myspace Layouts

जून 11, 2012

असर


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ के सर (सुलझने) होने तक,

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग (लहरों में मगरमच्छ)
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर (मुसीबत) होने तक,

आशिकी सब्र तलब (धैर्य) और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक,

हमने माना कि तगाफुल (उपेक्षा) ना करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक,

परतवे-खुर (सूरज) से है शबनम को फ़ना की तालीम 
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक,

यक-नज़र बेश (एक नज़र काफी) नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल 
गर्मी-ए-बज्म (,महफ़िल की गर्मी) है इक रक्स-ए-शरर (अंगारों का नाच) होने तक,

गम-ए-हस्ती (जिंदगी के गम) का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-(मौत के सिवा) इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक, 


9 टिप्‍पणियां:

  1. परतवे खुर से है शबनम को फना की तालीम।
    मैं भी हूँ एक इनायत की नजर होने तक।

    गालिब जिंदाबाद...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामीजून 11, 2012

    शुक्रिया आप सभी लोगों का ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक...बहुत प्रसिद्ध गजल और बेमिसाल भी...लेकिन आह में अगर जोर हो तो एक लम्हा भी काफ़ी है...

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍त‍ुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामीजून 12, 2012

    शुक्रिया अनीता जी, सदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही भावना पूर्ण प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...