कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझ से
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझ से,
ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाये है मुझ से,
वो बद-ख़ू (बदमिजाज़), और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी (लम्बी)
इबारत मुख़्तसर (छोटी), क़ासिद (डाकिया) भी घबरा जाये है मुझ से,
उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी (कमजोरी) है
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझ से,
सँभलने दे मुझे ऐ नाउम्मीदी, क्या क़यामत है
कि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझ से,
तकल्लुफ़ बर-तरफ़ (साफगोई), नज़्ज़ारगी (देखने) में भी सही, लेकिन
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझ से
हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ (इश्क की जुंग) में ज़ख़्मी
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझ से,
क़यामत है कि होवे मुद्दई (दुश्मन) का हमसफ़र "ग़ालिब"
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझ से
सँभलने दे मुझे ऐ नाउम्मीदी, क्या क़यामत है
जवाब देंहटाएंकि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझ से,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
sundar
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी, आशा जी।
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंकल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' जुलाई का महीना ''
शुक्रिया सदा जी।
हटाएंबहुत ही लाजवाब गज़ल है ग़ालिब साहब की ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल...हर इक शेर कितनी गहरी दास्तां छिपाए है...ग़ालिब की कलम...ना पूछा जाये है उससे न बोला जाये है मुझसे!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी लोगों का ।
जवाब देंहटाएंग़ालिब साहब की बहुत उम्दा गजल ,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...:चाय....
मिर्ज़ा ग़ालिब की ये बहुत ही मशहूर ग़ज़ल है..
जवाब देंहटाएंइसे आशा भोंसले ने अपनी मधुर आवाज़ में भी गाया है ..लेकिन वो एक ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़ल है.
बहुत दिनों बाद आज इसे यहाँ देख कर अच्छा लगा...और उसके सुर याद आ गए..
आपका आभार..
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल....
जवाब देंहटाएंसांझा करने का शुक्रिया
अनु
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंलाजवाब!!
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