आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ के सर (सुलझने) होने तक,
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग (लहरों में मगरमच्छ)
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर (मुसीबत) होने तक,
आशिकी सब्र तलब (धैर्य) और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक,
हमने माना कि तगाफुल (उपेक्षा) ना करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक,
परतवे-खुर (सूरज) से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक,
यक-नज़र बेश (एक नज़र काफी) नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म (,महफ़िल की गर्मी) है इक रक्स-ए-शरर (अंगारों का नाच) होने तक,
गम-ए-हस्ती (जिंदगी के गम) का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-(मौत के सिवा) इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक,
खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन गजल,,,,,,
जवाब देंहटाएंपरतवे खुर से है शबनम को फना की तालीम।
जवाब देंहटाएंमैं भी हूँ एक इनायत की नजर होने तक।
गालिब जिंदाबाद...
शुक्रिया आप सभी लोगों का ।
जवाब देंहटाएंआह को चाहिए एक उम्र असर होने तक...बहुत प्रसिद्ध गजल और बेमिसाल भी...लेकिन आह में अगर जोर हो तो एक लम्हा भी काफ़ी है...
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी, सदा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावना पूर्ण प्रस्तुति
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