कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी,
ख़लिशे-ग़म्ज़-ए-खूँरेज़ (तंज की चुभन) न पूछ
देख ख़ूनाबा-फ़िशानी (खून के आँसू) मेरी,
क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी (बकवास) मेरी,
हूँ ज़िख़ुद-रफ़्ताए-बैदा-ए-ख़याल(ख्यालों में खोया)
भूल जाना है निशानी मेरी,
मुत्तक़ाबिल (डरपोक) है मुक़ाबिल (दुश्मन) मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी,
क़द्रे-संगे-सरे-रह (रास्ते का पत्थर) रखता हूँ
सख़्त-अर्ज़ाँ (मामूली) है गिरानी (शख्सियत) मेरी,
गर्द-बाद-ए-रहे-बेताबी (सड़क की आँधी) हूँ
सरसरे-शौक़ (जोश) है बानी (खूबी) मेरी,
दहन (मुँह) उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी हेच-मदानी (बेवकूफी) मेरी,
कर दिया ज़ओफ़ (बीमारी) ने आज़िज़ "ग़ालिब"
नंग-ए-पीरी (बुढ़ापे से भी बुरी) है जवानी मेरी,
इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
क़द्रे-संगे-सरे-रह (रास्ते का पत्थर) रखता हूँ
जवाब देंहटाएंसख़्त-अर्ज़ाँ (मामूली) है गिरानी (शख्सियत) मेरी,
abhar ...khoosoorat prastuti ke liye ...!!
एक लाज़वाब रचना पढवाने के लिये आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
एक नायब गज़ल से रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंआखिरी शेर बहुत सरल है..बाकी कुछ समझ में आया कुछ नहीं...पढ़ने में अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी। समझ में आ जायेगा थोडा सा वक़्त देना होगा :-)
हटाएंक़द्रे-संगे-सरे-रह रखता हूँ
जवाब देंहटाएंसख़्त-अर्ज़ाँ है गिरानी मेरी!
मिर्ज़ा ग़ालिब के लिए क्या शब्द कहूं? बस आपका शुक्रिया अदा करता हूँ कि जटिल उर्दू अल्फाजों का हिंदी लिखकर पाठकों को ग़ालिब की ग़ज़लें समझ पाने योग्य बनाया.
सादर
उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
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