हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर (अमीर) हूँ तो साथ रखूँ नौहागर (मौत पर रोने वाले) को मैं,
छोड़ा न रश्क (जलन) ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं ?
जाना पड़ा रक़ीब (दुश्मन) के दर पर हज़ार बार
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं,
है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं,
लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम (बर्बाद) है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं,
चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ (बहती लहर) के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर (गुरु) को मैं,
ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश (पूजा) दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर (पत्थर दिल) को मैं?
फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार (यार की गली)
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं,
अपने पे कर रहा हूँ क़यास (अंदाज़ा) अहल-ए-दहर (दुनिया वालों) का
समझा हूँ दिल-पज़ीर (दिल की पसंद) मताअ़-ए-हुनर (दौलत का हुनर) को मैं
,
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़ (गर्व के घोड़े पर सवार)
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर (अली बहादुर - एक पीर) को मैं,
वाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से सजाई ग़ालिब की शायरी ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
इमरान भाई, बहुत अच्छा लगता है ग़ालिब को पढ़के... और साथ ही कुछ कठिन उर्दू अल्फाजों के मीनिंग्स जो आप लिख देते हैं, उससे कितनी सहूलियत हो जाती है!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया पोस्ट के लिए!
वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर गजल ,बेहतरीन प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
जाना पड़ा रकीब के दर पे हजार बार
जवाब देंहटाएंऐ काश जानता न तेरी रहगुज़र को मैं....
गालिब की गजलें... उनके एक एक शेर... क्या कहें…
मुझे गालिब को पढ़ने मे बड़ा आनंद आता है...
इस खूबसूरत कलाम को शेयर करने के लिए सादर आभार।
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंछोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ
जवाब देंहटाएंहर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं
वाह ! बहुत सुंदर ....ग़ालिब जैसे हर इंसान के दिल का हाल लिखते चले जाते हैं....इस खूबसूरत गजल के लिये शुक्रिया !
ग़ालिब को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ..........
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