आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे,
हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवैदा ( दिल का दाग़) कहें जिसे,
फूँका है किसने गोश-ए-मुहब्बत (सनम के कान) में ऐ ख़ुदा !
अफ़सून-ए-इन्तज़ार (इंतज़ार का जादू) तमन्ना कहें जिसे,
सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी (दर्द की इन्तिहा) से डालिये
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक (एक मुट्ठी ख़ाक) कि सहरा (रेगिस्तान) कहें जिसे,
है चश्म-ए-तर (भीगी आँख) में हसरत-ए-दीदार से निहां (छुपा)
शौक़-ए-अ़ना-गुसेख़्ता (बेलगाम शौक) दरिया कहें जिसे,
दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल हाये-ऐश (फूलों का खिलने) को
सुबह-ए-बहार पम्बा-ए-मीना (शराब में भीगा रुई का फाहा) कहें जिसे,
"गा़लिब" बुरा न मान जो वाइज़ (उपदेशक) बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे ?
ग़ालिब बुरा न मान जो वाईज बुरा कहे.... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंग़ालिब को पढ़ना. वाह! अपना अलग ही अनुभव है,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा शेर ...
जवाब देंहटाएंआभार पढवाने के लिए ...
वाह ! ग़ालिब की कलम से निकला एक और नायाब मोती...दिल में मुहब्बत हो तो दुनिया कैसे रंग बदलती है...इंतजार भी जादुई असर करता है, एक मुठ्ठी धूल रेगिस्तान का भरम देती है, एक आँसू दरिया बन जाता है, फूलूँ का खिलना नशे की याद दिलाता है और भला उस खुदा के सिवा कोई दूसरा अच्छा है भी ?
जवाब देंहटाएंऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे?
जवाब देंहटाएंसुभान-अल्लाह! बहुत उम्दा पंक्तियाँ.
GALIB BURA N MAN JO WISE BURA KAHE,
जवाब देंहटाएंAISA BHI KOE HAE KI SAB ACHHA JISE
GALIB SAHAB KI ACHHI GAZAL,
WAISE BHI GALIB KA KOE JAWAB NAHI
आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंफूँका है किसने गोश-ए-मुहब्बत में ऐ ख़ुदा !
जवाब देंहटाएंअफ़सून-ए-इन्तज़ार तमन्ना कहें जिसे,
भई वाह. ग़ालिब भी ख़ूब है और एक ही हुआ है.
भूषण जी , प्रसन्न जी शुक्रिया आपका ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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