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नवंबर 14, 2011

इन्तज़ार


ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार (मिलन) होता 
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता, 

तेरे वादे पर जीये हम तो ये जान झूठ जाना 
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता, 

तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अ़हद (सिर्फ) बोदा (वादा) 
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार (वफादार) होता, 

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश (नज़रों के तीर) को 
ये ख़लिश (चुभन) कहाँ से होती जो जिगर के पार होता, 

ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह (उपदेशक) 
कोई चारासाज़ (हकीम) होता, कोई ग़मगुसार (हमदर्द) होता, 

रग-ए-संग (पत्थर की नसों) से टपकता वो लहू कि फिर न थमता 
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार (अंगारा) होता, 

ग़म अगर्चे जां-गुसिल (जानलेवा) है, पर कहां बचे कि दिल है 
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता, ग़म-ए-रोज़गार होता,

कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है 
मुझे क्या बुरा था मरना? अगर एक बार होता, 

हुए मर के हम जो रुस्वा, हुए क्यों न ग़र्क़-ए-दरिया (दरिया में डूबना)
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता 

उसे कौन देख सकता, कि यग़ाना (बेमिसाल) है वो यकता (अद्वितीय) 
जो दुई (दुविधा) की बू भी होती तो कहीं दो चार होता 

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़ (सूफियों की तरह सोचना), ये तेरा बयान "ग़ालिब"! 
तुझे हम वली (पीर) समझते, जो न बादाख़्वार (शराबी) होता

8 टिप्‍पणियां:

  1. ग़म अगर्चे जां-गुसिल (जानलेवा) है, पर कहां बचे कि दिल है
    ग़म-ए-इश्क़ गर न होता, ग़म-ए-रोज़गार होता,

    कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
    मुझे क्या बुरा था मरना? अगर एक बार होता,

    वाह ...बहुत खूब इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ।

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  2. ग़ालिब की यह गजल वाकई बेहद बेहद काबिलेतारीफ है.. इसीलिए यह इतनी प्रसिद्ध है, हर शेर एक दास्तान बयान करता प्रतीत होता है.. शुक्रिया!

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  3. तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना....
    वाह! मज़ा आ गया....
    बहुत शुक्रिया इमरान भाई इस खूबसूरत गज़ल को शेयर करने के लिये....
    सादर...

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  4. aah..fir galib aur unki gazal...aur kya chahiye....

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  5. उर्दू भाषा में जो तहजीब होती है वो मुझे हमेशा ही आकर्षित करती है बशर्ते कभी- कभी समझ नहीं आती,.. पर आपने अर्थो को साथ में लिख कर शायरी का मजा दोगुना कर दिया है.....ग़ालिब जी की रचना पर कुछ भी कमेन्ट करना मुर्खता होगी.....मेरे लिए...
    अंसारी जी आपने फोलोवर बन कर जो उत्साह बढाया है.....हार्दिक आभार...

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  6. WAH KYA BAT HAI ......AB YE TASSAUAR KAHAN DEKHANE KO MILTE HAIN ...IMRAN BHAI GALIB SAHAB KI GAZALE PADH KR LEKHNI ME JAN AA HI JATI HAI....AUR HAN MERE NAYE POST PR APKA AMANTRAN HAI .

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  7. तीर ऐ नीम कश = ऐसा तीर जिसको कम खींच के छोड़ा गया हो, यानी अगर वो तीर पूरे वेग से छोड़ा जाता तो जिगर के पार हो जाता
    _______________________________________

    नीम = कम (जैसे नीम हकीम ख़तरा ऐ जान)
    कश = खींचना (जैसे कश लगा)

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  8. मनोज जैनजून 03, 2016

    नायाब साफ सुथरी सुंदर पेशकश इमरान अंसारी जी
    बहुत बहुत धन्यवाद

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...