है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और
करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और,
या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और,
आबरू से है क्या उस निगाह -ए-नाज़ को पैबंद
है तीर मुक़र्रर मगर उसकी है कमाँ और,
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आयेंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और,
हरचंद सुबुकदस्त (हाथ लगे रहे ) हुए बुतशिकनी (पत्थर की पूजा) में
हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ (चट्टान का पत्थर) और,
है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
होते कई जो दीदा-ए-ख़ूँनाबफ़िशाँ (खून रोने वाली आँखे) और,
मरता हूँ इस आवाज़ पे हरचंद सर उड़ जाये
जल्लाद को लेकिन वो कहे जाये कि हाँ और,
लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब (चमकता सूरज) का धोका
हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ (छुपा हुआ दाग) और,
लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन
करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ (कराह) और,
पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले (रोना)
रुकती है मेरी तब'अ (तबियत) तो होती है रवाँ और,
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर (शायर) बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और,
बस..वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत...
जवाब देंहटाएंलोगो को है .....दाग ए निहां और
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है ग़ालिब साहब की शायरी बार पढ़ना
लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब (चमकता सूरज) का धोका
जवाब देंहटाएंहर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ (छुपा हुआ दाग) और,
लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन
करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ (कराह) और,
वाह ...बहुत खूब ।
ग़ालिब का है अंदाजे बयान और...बहुत खूबसूरत शब्द और भाव!
जवाब देंहटाएंbahut khub, ..
जवाब देंहटाएंbahut badhiya..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंकहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयाँ और,
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर....
इनकी तारीफ़ करना सूरज को रौशनी दिखाने जैसा है,,, जसारत ही नहीं है अलफ़ाज़ अदा करने की
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