Click here for Myspace Layouts

सितंबर 01, 2010

काश की तुम मेरे लिए होते


मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते, जो मय पिये होते,

कहर हो या बला हो, जो कुछ भी हो
काश की तुम मेरे लिए होते,

मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते,

आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'
कुछ दिन और जिए होते,

4 टिप्‍पणियां:

  1. हैं और भी दुनिया में सुखनवर कई अच्छे.....
    कहतें हैं के ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयान और!
    सच में!
    आशीष
    --
    अब मैं ट्विटर पे भी!
    https://twitter.com/professorashish

    जवाब देंहटाएं
  2. चचा गालिब की मैं जबरदस्त प्रशंसक हूं...उनकी शायरी की तो मिसाल ही नहीं...एक साथ उनकी ग़ज़लें पढ़ना...एक ही जगह...बहुत खूब इमरान जी

    जवाब देंहटाएं
  3. इमरान अंसारी भाई आपके इस महान कार्य के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद| दिल खुश हो गया ग़ालिब साहब को पढ़ कर| आपके साथ साथ नूतन जी का भी शुक्रिया जो मुकम्मल वजह बनी आप तक पहुँचने की|

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...