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मई 25, 2013

परअफशाँ


अजब नशात (ख़ुशी) से जल्लाद के चले हैं हम आगे 
कि अपने साये से सर पाँव से है दो कदम आगे,

कज़ा (मौत) ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बाद-ए-उल्फत (इश्क़ का नशा)
फ़क़त 'ख़राब' लिखा बस न चल सका क़लम इससे आगे,

गम-ए-ज़माने ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती 
वर्ना हम भी उठाते थे लज्ज़त-ए-अलम (दुःख की ख़ुशी) आगे,

ख़ुदा के वास्ते दाद इस जूनून-ए-शौक की देना 
कि उसके दर पे पहुँचते हैं हम नामाबर (डाकिये) से आगे,  

ये उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं हमने 
तुम्हारे आइयो-ए-तुर्रह-ए-ख़म ब: ख़म (घुँघराले बालों की लटें) आगे,

दिल-ओ-जिगर में परअफशाँ (बेचैन) जो एक मौज-ए-खूँ (खून की लहर) है
हम अपने ज़ोम (गुरुर) में समझे हुए थे उसको दम (साँसे) आगे,

क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे,   


8 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब !!! मरहबा

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  2. बेनामीमई 25, 2013

    बहुत-बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...

    जवाब देंहटाएं
  3. ग़ालिब की एक और दिलनशीं पेशकश...शुक्रिया..

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  4. ग़ालिब की एक बेहतरीन रचनाको प्रस्तुति के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,साझा करने के लिए आभार,,,

    RECENT POST : बेटियाँ,

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर पेशकश इमरान भाई.

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  7. वाह ये आपका ब्लॉग तो कमाल का है ।

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...