रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
हमसुख़न (हमदर्द) कोई न हो और हमज़बाँ (अपनी भाषा जानने वाला) कोई न हो,
बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये
कोई हमसाया (साथी) न हो और पासबाँ (हिफाज़त करने वाला) कोई न हो,
पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार (बीमार की सेवा करने वाला)
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ (मौत पर रोने वाला) कोई न हो,
वाह ...बहुत खूब ..बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह! इसी को तो तलाश रहा था।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल !
जवाब देंहटाएंऐसी जगह तो आजकल बड़े शहरों में बहुत मिल जाएँगी...
मेल के द्वारा प्राप्त टिप्पणी -
जवाब देंहटाएंसोनरूपा विशाल ने आपकी पोस्ट " ग़ालिब का पता मिलता है, " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
ये नज्म मेरी बहुत पसंदीदा है ......नया ज्ञानोदय में पढ़ी थी आज फिर से पढकर अच्छा लगा !
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं@ अनीता जी ये व्यंग्य है पर सच है.....शायद ग़ालिब के वक़्त में ऐसा नहीं था तब लोग एक दूसरे से जुड़े रहते थे और उनके दुःख सुख में शरीक भी होते थे |
जवाब देंहटाएंकल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
उन्दा प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत अच्छी है गजल।
जवाब देंहटाएंसादर
asi jaghe to ab mil hi jayegi ...
जवाब देंहटाएंnice creation :)
Welcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरहिए अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो
जवाब देंहटाएंहमसुखन कोई न हो और हमजबां कोई न हो
अपना साहित्य(हमसुखन)और अपनी भाषा(हमज़बां) भी कहें तो गलत नहीं हैं। सुखन को अदब या साहित्य के अर्थ में भी लोग लेते हैं। सुखन को अब तक इसी अर्थ में मैं लेता रहा हूं।
शुक्रिया जाहिद साहब......हमसुखन का शायद ये ही मतलब हो.......दरअसल मैंने जिस किताब से इसे लिया था वहाँ यही मतलब था......खैर शुक्रिया आपकी आमद का और आपका सुझाव सर माथे पर |
हटाएंgaalib ki najmon par tippadi karna sooraj ko diya dikhana hae |aabhar jo aapne unki sundar najm se parichit karvaya .
जवाब देंहटाएंwaah! sahi kahte hai ke....galib ka hai andaajebyaan aur....pahli baar is blog par aana hua,khushi huee yhan aakar...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ........स्वागत है आपका|
हटाएंवाह बेहतरीन गज़ल...
जवाब देंहटाएंशायद ये उन्होंने आखरी वक्त में लिखी हो???
हो सकता है विद्या जी .........इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है |
हटाएंहा ऐसी कल्पना कोई अपने आखरी वक्त मे हि करेगा जवानी मे ऐसा लिखने की हिम्मत कहां है
हटाएंजब गालिब अपनी मुफ़लिसी मे जीवन यापन कर रहे थे तब उन्होने ये गजल लिखी
सादर आभार इमरान भाई, बेशकीमती अशआर शेयर करने के लिए...
जवाब देंहटाएंग़ालिब साहब के
जवाब देंहटाएंउम्दा कलाम के ज़रिये
सब से रु-ब-रु होने के लिए
शुक्रिया ...
आज के दोर मे ऐसी गजलो की कल्पना भी नहीं होती वाह क्या गजल है
जवाब देंहटाएंवाह क्या गजल है शुक्रिया
जवाब देंहटाएं