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अक्तूबर 14, 2011

हसरत


इश्क़ मुझको नहीं, वहशत ही सही 
मेरी वहशत, तेरी शोहरत ही सही 

क़तअ़ (खत्म) कीजे न तअ़ल्लुक़ हम से 
कुछ नहीं है, तो अ़दावत ही सही 

मेरे होने में है क्या रुस्वाई?
वो मजलिस नहीं ख़िल्वत (एकांत) ही सही 

हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मुहब्बत ही सही 

अपनी हस्ती ही से हो, जो कुछ हो 
आगही (होश) गर नहीं ग़फ़लत ही सही 

उम्र हरचंद कि है बर्क़-ख़िराम (दौड़ती हुई)  
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही 

हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं 
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही 

कुछ तो दे, ऐ फ़लक-ए-नाइन्साफ़ 
आह-ओ-फ़रिय़ाद की रुख़सत ही सही 

हम भी तस्लीम की खूँ डालेंगे 
बेनियाज़ी (ठुकराना) तेरी आदत ही सही 

यार से छेड़ चली जाये, "असद" 
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चुनाव ग़ालिब की गज़लों का

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  2. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  3. यह गजल पहले कभी सुनी हुई थी पर आज पढ़कर लगा कि समझ में आयी है, पूरी तरह समझा आज भी नहीं है...वहशत का अर्थ क्या है, ग़ालिब को पढवाने के लिए शुक्रिया!

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  4. Very well said by Anita Di.. and

    Very well selection by you.. Thanx Ansaari Saahab..

    My two creations are waiting for your comments..

    जवाब देंहटाएं
  5. Very well selection by you.. Thanx Ansaari Saahab..

    ...DIPAWALI MUBARAK HO...

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्ख-ए-अदब है, मुखतलिफ़ कहकशां है ग़ालिब
    शायरे-अज्म है, महबूब-ए-ज़हाँ है ग़ालिब."

    ग़ालिब की शायरी को यूँ एक स्थान पर सजाना...
    सचमुच बहुत अच्छा काम है इमरान भाई...
    साधुवाद आपको इस महत्वपूर्ण कार्य के लिये...
    सादर...

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  7. aapke blog par galib ko padhna hamesha accha lagta hai.

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...