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मार्च 05, 2013

परदा



लागर (दुबला) इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा (जगह) दे मुझे
मेरा ज़िम्मा, देखकर गर कोई बतला दे मुझे,

क्या तअज्जुब है कि उसको देखकर आ जाए रहम 
वाँ (वहाँ) तलक कोई किसी हीले (बहाने) से पहुँचा दे मुझे,

मुँह न दिखलाएं, न सही ब अंदाज़-ए-इताब (गुस्से में) 
खोलकर परदा ज़रा आँखें ही दिखला दें मुझे,

याँ (यहाँ) तलक मेरी गिरफ़्तारी से वो ख़ुश है, कि मैं 
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ तो शाने (कंधे) में उलझा दें मुझे,

- मिर्ज़ा ग़ालिब 

13 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ालिब साहब की एक बेहतरीन गजल,,,आभार ,,,इमरान जी,,

    Recent post: रंग,

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  2. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल शेयर की है जनाब,आभार.

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  3. जुल्फ गर बन जाऊँ तो शाने में उलझा दें मुझे..बहुत खूब ! सचमुच ग़ालिब का अंदाजेबयां है और..

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  4. बेनामीमार्च 06, 2013

    kya baat...
    har baat mein kuch baat hein.

    जवाब देंहटाएं
  5. मुँह न दिखलाएं, न सही ब अंदाज़-ए-इताब (गुस्से में)
    खोलकर परदा ज़रा आँखें ही दिखला दें मुझे,
    बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल शेयर की
    आप भी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
    latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
    latest post होली

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  6. सलाम अंसारी साहब मिर्ज़ा ग़ालिब को पढ़ वाया ,अलफ़ाज़ नए समझाए .शुक्रिया उस्ताद जी .

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  7. ग़ालिब को पढ़कर उन्हें समझ पाना ...बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग .....शुभकामनाएं
    कृपया एक नजर इधर भी डालें .मेरे ब्लॉग (स्याही के बूटे) पर ..आपका स्वागत है
    http://shikhagupta83.blogspot.in/

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  8. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूब ... इसलिए ही कहते हैं की ग़ालिब का अन्दाजें बयाँ है कुछ ओर ...
    शुक्रिया ...

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  10. आप सभी लोगों का आभार यहाँ तक आने का और अपनी राय देने का।

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  11. भाई चिचा का जवाब नहीं | इनके इल्म का कोई सानी नहीं आज तक | मैं खुशनसीब हूँ के इनका पडोसी हूँ | चिचा से अक्सर मुलाक़ात होती रहती हैं इनकी हवेली पर | बहुत सुकून मिलता है | शुक्रिया भाई आपका भी जो आपने ये ब्लॉग बनाया मुझे कम से कम अपनी पसंदीदा शायरी और ग़ज़ल पढने को तो मिल रही है हिंदी में तर्जुमे और मतलब के साथ | शुक्रिया और आदाब |

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जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...