कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ कि गुम कीजे? हमने मुद्दआ़ (वजह) पाया,
इश्क़ से तबीअ़त ने ज़ीस्त (जिंदगी) का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बे-दवा पाया,
दोस्त दारे-दुश्मन (दुश्मन का दोस्त) है, एतमादे-दिल (यकीन) मालूम
आह बेअसर देखी, नाला (रोना) नारसा (बेकार) पाया,
सादगी व पुरकारी (चालाकी) बेख़ुदी व हुशियारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल (बेपरवाही) में जुरअत-आज़मा पाया,
गुंचा फिर लगा खिलने, आज हम ने अपना दिल
खूँ किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया,
हाल-ए-दिल नहीं मालूम, लेकिन इस क़दर यानी
हम ने बारहा (बार-बार) ढूंढा, तुम ने बारहा पाया,
शोर-ए-पन्दे-नासेह (उपदेश का शोर) ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मज़ा पाया,
ना असद जफ़ा-साइल (ज़ालिम) ना सितम जुनूं-माइल (दीवाना)
तुझ को जिस क़दर ढूंढा उल्फ़त-आज़मा (पारखी) पाया,
सागर से एक और मोती लाने का शुक्रिया..........ग़ालिब को कितना भी पढो हर बार कुछ नया एहसास होता है..
जवाब देंहटाएंइमरान जी !! मिर्जा ग़ालिब जी की इस सुन्दर गजल को शेयर किया आपने .. सादर शुक्रिया .. कल चर्चामंच पर आपका ब्लॉग और यह गजल होगी..
जवाब देंहटाएंbhai imran sahab galib ko padhana bahut shukhad laga bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंबडी सुन्दर गज़ल लगाई है।
जवाब देंहटाएंBahut achchi ghazal lagaai hai.
जवाब देंहटाएंShukriya.
-Gyanchand marmagya
आज ४ फरवरी को आपका यह सुन्दर ब्लॉग और पोस्ट चर्चामंच पर है... आपका धन्यवाद ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html