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मई 25, 2012

कब वो सुनता है कहानी मेरी



कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी,

ख़लिशे-ग़म्ज़-ए-खूँरेज़ (तंज की चुभन) न पूछ
देख ख़ूनाबा-फ़िशानी (खून के आँसू) मेरी,

क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी (बकवास) मेरी,

हूँ ज़िख़ुद-रफ़्ताए-बैदा-ए-ख़याल(ख्यालों में खोया)
भूल जाना है निशानी मेरी,

मुत्तक़ाबिल (डरपोक) है मुक़ाबिल (दुश्मन) मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी,

क़द्रे-संगे-सरे-रह (रास्ते का पत्थर) रखता हूँ
सख़्त-अर्ज़ाँ (मामूली) है गिरानी (शख्सियत) मेरी,

गर्द-बाद-ए-रहे-बेताबी (सड़क की आँधी) हूँ
सरसरे-शौक़ (जोश) है बानी (खूबी) मेरी,

दहन (मुँह) उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी हेच-मदानी (बेवकूफी) मेरी,

कर दिया ज़ओफ़ (बीमारी) ने आज़िज़ "ग़ालिब"
नंग-ए-पीरी (बुढ़ापे से भी बुरी) है जवानी मेरी,

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए आभार ।

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  2. क़द्रे-संगे-सरे-रह (रास्ते का पत्थर) रखता हूँ
    सख़्त-अर्ज़ाँ (मामूली) है गिरानी (शख्सियत) मेरी,

    abhar ...khoosoorat prastuti ke liye ...!!

    जवाब देंहटाएं
  3. एक लाज़वाब रचना पढवाने के लिये आभार...

    जवाब देंहटाएं
  4. एक नायब गज़ल से रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामीमई 25, 2012

    आप सभी लोगों का तहेदिल से शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  6. आखिरी शेर बहुत सरल है..बाकी कुछ समझ में आया कुछ नहीं...पढ़ने में अच्छा लगा !

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    उत्तर
    1. बेनामीमई 26, 2012

      शुक्रिया अनीता जी। समझ में आ जायेगा थोडा सा वक़्त देना होगा :-)

      हटाएं
  7. क़द्रे-संगे-सरे-रह रखता हूँ
    सख़्त-अर्ज़ाँ है गिरानी मेरी!

    मिर्ज़ा ग़ालिब के लिए क्या शब्द कहूं? बस आपका शुक्रिया अदा करता हूँ कि जटिल उर्दू अल्फाजों का हिंदी लिखकर पाठकों को ग़ालिब की ग़ज़लें समझ पाने योग्य बनाया.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...