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जुलाई 18, 2013

महफ़िल

बाग़ पाकर ख़फ़कानी (पागल) यह डराता है मुझे 
साय-ए-शाख़-ए-ग़ुल (डाली की छाया) अफई (साँप) नज़र आता है मुझे,  

जौहर-ए-तेग (तलवार की तेज़ी) बसर चश्मा-ए-दीगर मालूम (आँखों देखी)
हूँ मैं वो सब्ज़ा (पेड़) की ज़हराब (जहर भरा पानी) उगाता है मुझे,

मुद्दआ महब-ए-तमाशा-ए-शिकस्त-ए-दिल (दिल टूटने का तमाशा) है
आईनाखाने में कोई लिए जाता है मुझे,

नाला सरमाय-ए-यक आलम (आर्तनाद ही सच)आलम क़फ़-ए-ख़ाक (मुट्ठी भर ख़ाक)
आसमाँ बैज-ए-क़ुमरी (कुमरी पक्षी का अंडा) नज़र आता है मुझे 

जिंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे 
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे?