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मई 25, 2013

परअफशाँ


अजब नशात (ख़ुशी) से जल्लाद के चले हैं हम आगे 
कि अपने साये से सर पाँव से है दो कदम आगे,

कज़ा (मौत) ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बाद-ए-उल्फत (इश्क़ का नशा)
फ़क़त 'ख़राब' लिखा बस न चल सका क़लम इससे आगे,

गम-ए-ज़माने ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती 
वर्ना हम भी उठाते थे लज्ज़त-ए-अलम (दुःख की ख़ुशी) आगे,

ख़ुदा के वास्ते दाद इस जूनून-ए-शौक की देना 
कि उसके दर पे पहुँचते हैं हम नामाबर (डाकिये) से आगे,  

ये उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं हमने 
तुम्हारे आइयो-ए-तुर्रह-ए-ख़म ब: ख़म (घुँघराले बालों की लटें) आगे,

दिल-ओ-जिगर में परअफशाँ (बेचैन) जो एक मौज-ए-खूँ (खून की लहर) है
हम अपने ज़ोम (गुरुर) में समझे हुए थे उसको दम (साँसे) आगे,

क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे,