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जनवरी 23, 2013

ये भी न सही


न हुई ग़र मेरे मरने से तसल्ली, न सही 
इम्तिहाँ और भी बाकि हों, तो ये भी न सही,

खार-ए-आलम-ए-हसरत-ए-दीदार (काँटों भरे रास्ते पर दीदार की हसरत) तो है
शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली (सब्र के गुलिस्ताँ के फूल) न सही,

मयपरस्तों ! (शराबियों) खुम-ए-मय (शराब का घूँट) मुँह से लगाये ही बनी 
एक दिन ग़र न हुआ बज़्म (महफ़िल) में साक़ी न सही 

नफ़स-ए-कैस (मजनूँ की साँस) की है चश्मा-ओ-चराग-ए-सहरा (रेगिस्तान का तालाब)
ग़र नहीं शमा-ए-सियाहखाना-ए-लैला (लैला के अँधेरे घर की शमा) न सही,

एक हंगामे पर मौक़ूफ़ (बंद) है घर की रौनक 
नौह-ए-गम (मातम) ही सही, नगमा-ए-शादी न सही,

न सिताइश (तारीफ) की तमन्ना, न सिले (इनाम) की परवाह
ग़र नहीं है मेरे अशआर (शेरों) में मानी (अर्थ) न सही

इशरत-ए-सोहबत-ए-खूबाँ (माशूक़ के साथ का ऐश्वर्य) ही गनीमत समझो
न हुई 'ग़ालिब', अगर उम्र-ए-तबीई (लम्बी उम्र) न सही     

जनवरी 08, 2013

क़हर



मैं उन्हें छेड़ूँ और,  कुछ न कहें
चल निकलते जो मय पिए होते,

क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो 
काश ! कि तुम मेरे लिए होते,

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था 
दिल भी या रब ! कई दिए होते,

आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'
कोई दिन और भी जिए होते,