Click here for Myspace Layouts

नवंबर 13, 2013

खुदा की कुदरत



ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं 
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते हैं,

वो आये घर में हमारे खुदा की कुदरत है 
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं,

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को 
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख्म-ए-जिगर को देखते हैं,

तेरे जवाहिर-ए-तर्फ़-ए-कुल (ताज में जड़े हीरे) को क्या देखें !
हम औज-ए-ताले-ए-लाल-ओ-गुहर (हीरे की किस्मत) को देखते हैं,      

4 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा कार्य
    बेहतरीन गजल को इक जगह जमा करना
    खुद नेमत दे आपको भाई

    जवाब देंहटाएं
  2. http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/के शुक्रवारीय अंक ४४ १५/११/२०१३ में आपकी पोस्ट को शामिल किया गया कृपया अवलोकन हेतु पधारे धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. ग़ालिब की बहुत प्रसिद्ध गजल..पढवाने के लिए शुक्रिया..

    जवाब देंहटाएं
  4. एक उम्दा गज़ल को पढवाने का शुक्रिया ...

    जवाब देंहटाएं

जो दे उसका भी भला....जो न दे उसका भी भला...